आज हम आधुनिक यंत्रों के ज़रिए भविष्य के मौसम का पूर्वानुमान लगा सकते हैं.लेकिन सदियों पहले ही मारवाड़ के लोगों ने मौसम विज्ञान का सार तुकबंदियों और कहावतों में पिरो दिया था.बड़े बुर्जुगों से कई कहावतें आपने भी सुनी होगी, इन्हे परखने पर पता चलता है कि यह संक्षेप में सार बयां करने का बरसों पुराना अंदाज था.लेकिन क्या आप जानते है कि मौसम कि भविष्यवाणी करने वाली भी लोक कहावतें हैं.
राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र के किसान आज भी इन कहावतों पर भरोसा करते है.यहाँ के लोगों ने अपना विज्ञान लोक कहावतों और तुकबंदियो के बलबूते विकसित किया है.आज भले ही आधुनिक मशीनी यंत्रो से मौसम वर्षा, आंधी, तूफान की अग्रिम जानकारी मिल जाती है लेकिन मारवाड़ के ग्रामीण जन आज भी इन कहावतों पर विश्वास करते हैं.यह कहावतें और भविष्य और इनके आधार पर की गई भविष्यवाणियां ज्यादातर सटीक और सही भी होती है.तभी तो इन लोगों का विश्वास इतना पक्का हो गया है.
कुछ कहावतें हैं जो दिन के हिसाब से मौसम का हाल बंया करती है.जैसे
शुक्रवार री बदरी,रही शनिचर छाए।
डंक कहे है भडड्ली,वर्षा बिन न जाए ।
इस कहावत के अनुसार डंक भडड्ली से कहता है- य़दि शुक्रवार को बादल आए और शनिवार तक रहें, तो समझ जाओ कि बादल बरसे बिना नहीं जाएंगे, यानी ऐसे संकेत मिलने पर बारिश का होना तय समझा जाता है.........
माह मंगल, जेठ रबी,भारदेव सन होय।
डंक कहे है भडड्ली,बिरला जिवै कोय।
इसमें बताया गया है कि माघ माह में यदि पांच मंगलवार हों, जेठ माह मे पांच रविवार औऱ भादों में पांच शनिवार हो, तो डंक भडड्ली से कहता हैभविष्य में ऐसा अकाल पड़ेगा, जिसके बाद शायद ही कोई जीवित बचे.इनके अलावा कुछ ऐसी कहावतें हैं जो हवा के रुख़ को भांपकर बारिश या अकाल पड़ने की सम्भावना की बात कहती है...
नाडा टाकंण बलद विकावण।
मत बाजे तू, आधे सावण।
जब आधे सावन में दक्षिण पूर्व की हवा चलती है, तो मारवाड़ का किसान कहता है, हे भगवान ऐसी हवा मत चल, जिससे अकाल आने की सूचना मिलती है। जिसके कारण किसान को अपना बैल बेचना पड़ जाता है....
पवन बाजे सूरयो,तो हाली,
हलाव कीम पुरयो ।
यदि उतर-पश्चिम कोण की ओर से हवा चले, तो किसान को नई ज़मीन पर हल नहीं चलना चाहिए, क्योंकि मेघ जल्दी आने वाला है.....इसी तरह मारवाड़ के किसान सूर्य और चंद्रमा के उदय होने के स्थान पर भी निर्भर रहता है.....
सोमां, सुकरां, सुरगुंरा जै चंदो उगंत।
डंक काहे है भडड्ली,जल,थल एक करंत।
यदि आषाढ मास में चंद्रमा सोमवार, गुरुवार या शुक्रवार को उदय हो, तो डंक भड्डली से कहता है कि जल थल एक हो जाएंगे यानी वर्षा खूब होगी......
इन कहावतों के आधार पर मौसम का अंदाजा लगाने का क्रम बरसों से चल रहा है और शायद आगे भी सदियों तक चलता रहेगा...मौसम की भविष्यवाणी करने वाले यंत्रो के आने से बहुत पहले ही इस गांव के बुजुर्गों ने कहावतों में मौसम का भविष्य गढ़ दिया है। जिनकी सटीकता और प्रमाणिकता पर संदेह नहीं किया जा सकता
सच, अद्भुत है हमारा देश।
राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र के किसान आज भी इन कहावतों पर भरोसा करते है.यहाँ के लोगों ने अपना विज्ञान लोक कहावतों और तुकबंदियो के बलबूते विकसित किया है.आज भले ही आधुनिक मशीनी यंत्रो से मौसम वर्षा, आंधी, तूफान की अग्रिम जानकारी मिल जाती है लेकिन मारवाड़ के ग्रामीण जन आज भी इन कहावतों पर विश्वास करते हैं.यह कहावतें और भविष्य और इनके आधार पर की गई भविष्यवाणियां ज्यादातर सटीक और सही भी होती है.तभी तो इन लोगों का विश्वास इतना पक्का हो गया है.
कुछ कहावतें हैं जो दिन के हिसाब से मौसम का हाल बंया करती है.जैसे
शुक्रवार री बदरी,रही शनिचर छाए।
डंक कहे है भडड्ली,वर्षा बिन न जाए ।
इस कहावत के अनुसार डंक भडड्ली से कहता है- य़दि शुक्रवार को बादल आए और शनिवार तक रहें, तो समझ जाओ कि बादल बरसे बिना नहीं जाएंगे, यानी ऐसे संकेत मिलने पर बारिश का होना तय समझा जाता है.........
माह मंगल, जेठ रबी,भारदेव सन होय।
डंक कहे है भडड्ली,बिरला जिवै कोय।
इसमें बताया गया है कि माघ माह में यदि पांच मंगलवार हों, जेठ माह मे पांच रविवार औऱ भादों में पांच शनिवार हो, तो डंक भडड्ली से कहता हैभविष्य में ऐसा अकाल पड़ेगा, जिसके बाद शायद ही कोई जीवित बचे.इनके अलावा कुछ ऐसी कहावतें हैं जो हवा के रुख़ को भांपकर बारिश या अकाल पड़ने की सम्भावना की बात कहती है...
नाडा टाकंण बलद विकावण।
मत बाजे तू, आधे सावण।
जब आधे सावन में दक्षिण पूर्व की हवा चलती है, तो मारवाड़ का किसान कहता है, हे भगवान ऐसी हवा मत चल, जिससे अकाल आने की सूचना मिलती है। जिसके कारण किसान को अपना बैल बेचना पड़ जाता है....
पवन बाजे सूरयो,तो हाली,
हलाव कीम पुरयो ।
यदि उतर-पश्चिम कोण की ओर से हवा चले, तो किसान को नई ज़मीन पर हल नहीं चलना चाहिए, क्योंकि मेघ जल्दी आने वाला है.....इसी तरह मारवाड़ के किसान सूर्य और चंद्रमा के उदय होने के स्थान पर भी निर्भर रहता है.....
सोमां, सुकरां, सुरगुंरा जै चंदो उगंत।
डंक काहे है भडड्ली,जल,थल एक करंत।
यदि आषाढ मास में चंद्रमा सोमवार, गुरुवार या शुक्रवार को उदय हो, तो डंक भड्डली से कहता है कि जल थल एक हो जाएंगे यानी वर्षा खूब होगी......
इन कहावतों के आधार पर मौसम का अंदाजा लगाने का क्रम बरसों से चल रहा है और शायद आगे भी सदियों तक चलता रहेगा...मौसम की भविष्यवाणी करने वाले यंत्रो के आने से बहुत पहले ही इस गांव के बुजुर्गों ने कहावतों में मौसम का भविष्य गढ़ दिया है। जिनकी सटीकता और प्रमाणिकता पर संदेह नहीं किया जा सकता
सच, अद्भुत है हमारा देश।