अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ अमेरिकी मुहिम का समय जैसे-जैसे बितता जा रहा है वैसे-वैसे एक संशय पूर्ण स्थिति बनती जा रही है अलकायदा एवं तालिबान के विरुद्ध संयुक्त राज्य अमेरिका एवं नाटो की सेना द्वारा छेड़े गए युद्ध ने अफगानिस्तान पर उनका फौजी आधिपत्य स्थापित कर लिया किंतु अपने अभियान के मुल उद्शेय को प्राप्त करने में विफल रहे है। अल कायदा सक्रिय है तथा तालिबान पुन: शक्तिशाली होकर उभर रहे है..सात साल से अधिक समय के सैनिक आधिपत्य की उपलब्धि के रुप में अमेरिका यदि कुछ पेश कर पा रहा है तो वह है तबाही का मंजर तथा हतातों की बढ़ती संख्या । इतिहास तो यही बताता है कि अफग़ानिस्तान में न तो ब्रिटेन असल लड़ाई जीत पाया और न सोवियत संघ । भावी परिणाम क्या होगा यह तो आने वाला समय ही बतायगा लेकिन अभी स्थितियां तो गंभीर है
अमेरिका मध्यपूर्व एशिया में दो लड़ाई लड़ रहा है बगदाद में कमान तेहरान के हाथो और अफगानिस्तान की कमान तालिबान के हाथों में जाता हुआ दिख रहा है अमेरिका व नाटो कि 75 हजार से अधिक सेना अफगानिस्तान में मौजूद है। 2001 में जब विदेशी हमालवरो ने अफगानिस्तान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया तो सैनिक की संख्या 20 हजार थी, सैन्य ताकत में चार गुना बढोतरी करने के बावजूद तालिबान को नष्ट करना तो दूर रहा उनके पून: प्रभावी होने का न रोक पाना बताता है कि अमेरिका के अफगान नीति पूर्णत: विफल रही। वह यूद्ध से अक्रांत राष्ट्र को शान्ति तथा स्थिरता प्रदान नहीं कर सका और न ही वहाँ पर सही अर्थों में प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था तथा राष्ट्र की एकता और अखण्डता कायम की जा सकी ।अफगान जनता का एक हिस्सा अगर आज तालिबान का साथ देता दिखाई दे रहा है तो उसका एक कारण यह है कि तालिबान नेता उमर ने अपने को देश की मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहे योद्धाओं के रुप में पेश किया।
तालिबान के इस अभ्युदय के लिए एक से अधिक कारण जिम्मेदार है। जिस ढंग से अमेरिकी तथा नाटो की सेना अपने सैनिक अभियान चला रही है उससे अफगान जनता में आक्रोश पैदा हो रहा है । हवाई हमले तालिबान को निशाना बनाकर नहीं हो रहे है अपितु अन्धाधुन्ध की तरह से किए जा रहे है
अत: इनु हमलो के शिकार मूख्यत: निरह नागरिक बन रहे है । इन हवाई हमलो के चलते अफगान जनता साम्रज्यवादियो से नाराज होने के साथ-साथ हमीद करजई सरकार से विमुख होते जा रही है....
राहुल कुमार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें