ऐसा माना जाता है कि शंकर की प्रताड़ना के बाद जब सती ने उसी यज्ञ की अग्नि में स्वयं की आहुति दे दी तो शंकर क्रोध में आकर उस जलते शरीर को सारे ब्राह्मांड में लेकर गए। उसी शरीर का कुछ भाग छुट कर नैनीताल में गिरा, जहां आज भारत के चौंसठ शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ नैना देवी है। निकट में झील और ताल होने के कारण इस पर्वतीय क्षेत्र का नाम नैनीताल पड़ गया।
नैनीताल की भव्य पर्वत श्रृखंला और उसकी हरियाली के बीच नैनी झील का अपना ही गीत है। नैनीताल में विदेशी सैलानियों का अड्डा बन गया है और उत्तर पश्चिमी राज्यों और जिलों की नई पर्यटन राजधानी भी, इसे कह सकते हैं।
दरसल यहां भी सुंदरता ने ही पर्यटको को अपनी ओर खींचा और परि झीलों का संगीत ने और उन्हें और भी आकर्षित किया।
नैनी झील और आसपास की सुंदर वादियों मे पानी से जगमगाती और कई झीलों के कारण नैनीताल जिले को झीलों का शहर भी माना जाता है। इन पानी की झीलों की गहराई और झील की गहरी आंखों दोनों में डुबना-उतरना किसी भी शैलानी को रोमांचित करने के लिए काफी है। सर्दी के बर्फानी हवा और गर्मी में ठंडी बयार दोनों ही यात्रियों को तन-मन का स्पर्श करती है। जब कभी बादल नीचे झुकर झील के पानी का चुंबन लेने को उतरतें हैं तब सिहरा जाने वाले ओले भी तन-मन को भिगो जाते हैं। कुछ ऐसा ही बनाया है प्रकृति ने अपने साथ मनुष्य का सबंध।
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