जी करता है, आज एक धारा बन जाऊं,
दरिया की बाहों में बहते हुए,
सागर की गहराइयों में कहीं खो जाऊं।
न किनारों का बंधन हो, न कोई ठहराव,
बस लहरों संग नित नए सफर पर चलूं,
जहां मौन भी मुझे न छू सके,
ऐसे अनंत में कहीं विलीन हो जाऊं।
शब्दों की हलचल से दूर,
एक निर्जन सन्नाटे का हिस्सा बनूं,
जहां मेरी गूँज भी ख़ुद से अजनबी हो,
जहां समय भी मुझे पहचान न सके।
मैं बहूं, मैं बहूं, निरंतर बहूं,
ना किसी ओर ठहरूं, ना किसी में समाऊं,
सिर्फ़ एक अहसास बनकर रह जाऊं,
जिसे कोई देख न सके, बस महसूस कर पाए।