ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार के आंकड़े जो कहानी कहते हैं वह काफ़ी दयनीय है. राज्य में कुल 36, 84,523 परिवार ऐसे हैं जो नरेगा में निबंधित हैं. अगर बीते समय की बात की जाये तो वर्ष 1997-2002 में बीपीएल परिवारों की संख्या 23,52,671 थी, जो 2002-07 में बढ़कर 25,48,780 हो गयी. मतलब 1997-2002 के मुकाबले अगले पांच सालों में मात्र 1,96,209 परिवार में बीपीएल में निबंधित हुये. जबकि 25 मार्च 2010 तक आंकड़ों पर गौर किया जाय तो इसमें करीब साढ़े ग्यारह लाख बीपीएल परिवारों का निबंधन हुआ है. इससे यह साबित होता है कि राज्य में बीपीएल परिवार नरेगा से अभी भी अपरिचित है, नरेगा तक उसकी पहुंच अभी भी बाधित है. इससे एक और प्रश्न उठता है कि कहीं बीपीएल सूची गलत तो नहीं है या फ़िर कंप्यूटर में फ़ीड किये गये आंकड़े विश्वसनीय नहीं है.
विश्व में अधिक लोग गरीब हैं अगर हम गरीबी के अर्थशास्त्र को जान लें तो हम जानेंगे सही अर्थशास्त्र को जो सचमुच मायने रखता है. -डॉ डब्लू शुल्ज, 1980नोबेल पुरस्कार ग्रहण करते हुए अपने अभिभाषण के प्रथम वाक्य में डॉ शुल्ज ने कहा- आज अर्थशास्त्र की सबसे पेंचीदी पहेली यह है कि लंबे-लंबे अरसे तक लोग इतने गरीब क्यों रहते हैं और पुश्त दर पुश्त गरीबी उन्हें प्रताड़ित करती है और उनका योगदान मानव संसाधन एवं भौतिक पूंजी के संवर्धन में संभव नहीं हो पाता है.झारखंड में पुश्त दर पुश्त गांवों में गहराती गरीबी गंभीर अध्ययन का विषय है. गरीबी रेखा निर्धारण का उद्देश्य था कि विभिन्न स्वरोजगारों और सरकारी अनुदानों तथा सांस्थिक वित्त के सहारे सामान्यत दो वषरे की अवधि में परिवारों की आमदनी में बढ़ोत्तरी हो जाये और वे गरीबी रेखा से उपर उठ जायें. 10 वर्षो के शासनकाल में राज्य सरकार ने ऐसा कोई विवरण प्रकाशित नहीं किया है. गरीबी बहुआयामी अभावग्रस्तता करे कहते हैं. पारिवारिक आमदनी, रोजगार, बचत और निवेश की शक्ति, कुपोषण मुक्त स्वस्थ्य जीवन, पेयजल, आवास, स्वच्छता, पर्यावरण, शिक्षा, सिंचाई, विद्युत, पथ, परिवहन, विपणन एवं सुरक्षा गरीबी उन्मूलन के आयाम हैं. समेकित ग्रामीण विकास की अवधारणा मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व काल में उपजी और नोडल संस्था के रूप में डीआरडीए (जिला ग्रामीण विकास अभिकरण) संस्थापित हुई. अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में कृषि की उत्पादकता बढ़ाने और पारिवारिक आय में वृद्धि के लिये गैर-कृषि व्यवसायों एवं उद्योगों को स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के अंतर्गत ठोस आधार प्रदान करने के लिए विभिन्न राज्यों में अभियान संचालित हुए. अन्य राज्यों में स्वसहायता समूहों तथा माइक्रोफ़ाइनेंस के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पर्याप्त सुधार संभव हुआ है. किंतु ये सारे कार्यक्रम झारखंड में अंकुरित नहीं हो पाये.शिबू मंत्रिमंडलनवनियुक्त शिबू सोरेन मंत्रिमंडल की प्रथम बैठक 30.12.09 को आयोजित हुई और बीपीएल सूची के पुनरीक्षण का निर्णय लिया गया. संभवत: 10 वर्षो के इतिहास में यह पहला अवसर था कि मंत्रीपरिषद की बैठक के एजेंडा में बीपीएल सूची का विषय शामिल किया गया. यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है कि मंत्रीपरिषद को यह जिज्ञासा नहीं हुई कि कोई बीस वर्षो से चल रही बीपीएल सूची में जो भी परिवार सम्मिलित हैं, सही या गलत, उनमें से कितने किस रूप में लाभान्वित हुए, कितने बीपीएल परिवार एपीएल हुए. विकास योजनाओं से किस रूप में ये लाभान्वित हुए.
डीआरडीए एक बड़ी जिम्मेदारी
जब 1980 में भारत सरकार ने विस्तृत दिशा-निर्देश निर्गत करते हुए प्रत्येक जिला स्तर पर सोसाइटिज रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के अंतर्गत डीआरडीए के गठन एवं निबंधन का निर्णय लिया तो उसमें डीआरडीए के लिए विभिन्न कार्य तय किये गये. स्वीकृति वाई लाज के अनुसार स्वैच्छी संस्था के रूप में डीआरडीए को निम्नलिखित मुख्य कृत्यों एवं कत्तर्व्यों का निर्वहन करना है-1. गरीब परिवारों को पहचान, ग्रामवार एवं प्रखंडवार बीपीएल सूची का निर्माण और प्रत्येक पांच वर्षो में कम से कम एक बार सूची का विधिवत सर्वेक्षण संपदान. भारतीय संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम 1992 के प्रावधानानुसार गरीब परिवारों को पहचान की संवैधानिक शक्ति ग्रामसभा को प्रदत्त की गयी और डीआरडीए से अपेक्षा की गयी कि सूची पुनरीक्षण एवं अवद्यतीकरण में डीआरडीए ग्राम सभा को तकनीकी सहायता प्रदान करेगा.2. गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों एवं अन्य विकास कार्यो के लिए ग्राम सभाओं एवं पंचायतों के परामर्श से वार्षिक एवं पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण.3. बैकों के साथ समन्वय स्थगित कर सांस्थिक वित्त की उपलब्धि, सरकारी अंशदान का सदुयोग एवं उत्पादक परियोजनाओं का निरुपण, अंतर्विभागीय समन्वय एवं समीक्षा और जनजागरुकता की व्यवस्था.4. गरीब परिवारों का स्वयं सहायता समूह गठित कर उन्हें वित्त, प्रबंधन, विपणन एवं प्रशिक्षण सुनिश्चित करना तथा गरीब परिवारों को स्वरोजगार कार्यक्रम के अंतर्गत तीन वषरें में गरीबी रेखा से उपर ले जाना.प्रत्येक डीआरडीए की एक गवर्निग बॉडी अधिसूचित है, जिसमें जिले से निर्वाचित सांसदों-विधायकों के अतिरिक्त छह-सात अन्य सदस्य है जो जिलास्तर पर शीर्ष संस्था के रूप में कार्य करती है. उपायुक्त इसके अध्यक्ष है
विश्व में अधिक लोग गरीब हैं अगर हम गरीबी के अर्थशास्त्र को जान लें तो हम जानेंगे सही अर्थशास्त्र को जो सचमुच मायने रखता है. -डॉ डब्लू शुल्ज, 1980नोबेल पुरस्कार ग्रहण करते हुए अपने अभिभाषण के प्रथम वाक्य में डॉ शुल्ज ने कहा- आज अर्थशास्त्र की सबसे पेंचीदी पहेली यह है कि लंबे-लंबे अरसे तक लोग इतने गरीब क्यों रहते हैं और पुश्त दर पुश्त गरीबी उन्हें प्रताड़ित करती है और उनका योगदान मानव संसाधन एवं भौतिक पूंजी के संवर्धन में संभव नहीं हो पाता है.झारखंड में पुश्त दर पुश्त गांवों में गहराती गरीबी गंभीर अध्ययन का विषय है. गरीबी रेखा निर्धारण का उद्देश्य था कि विभिन्न स्वरोजगारों और सरकारी अनुदानों तथा सांस्थिक वित्त के सहारे सामान्यत दो वषरे की अवधि में परिवारों की आमदनी में बढ़ोत्तरी हो जाये और वे गरीबी रेखा से उपर उठ जायें. 10 वर्षो के शासनकाल में राज्य सरकार ने ऐसा कोई विवरण प्रकाशित नहीं किया है. गरीबी बहुआयामी अभावग्रस्तता करे कहते हैं. पारिवारिक आमदनी, रोजगार, बचत और निवेश की शक्ति, कुपोषण मुक्त स्वस्थ्य जीवन, पेयजल, आवास, स्वच्छता, पर्यावरण, शिक्षा, सिंचाई, विद्युत, पथ, परिवहन, विपणन एवं सुरक्षा गरीबी उन्मूलन के आयाम हैं. समेकित ग्रामीण विकास की अवधारणा मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व काल में उपजी और नोडल संस्था के रूप में डीआरडीए (जिला ग्रामीण विकास अभिकरण) संस्थापित हुई. अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में कृषि की उत्पादकता बढ़ाने और पारिवारिक आय में वृद्धि के लिये गैर-कृषि व्यवसायों एवं उद्योगों को स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के अंतर्गत ठोस आधार प्रदान करने के लिए विभिन्न राज्यों में अभियान संचालित हुए. अन्य राज्यों में स्वसहायता समूहों तथा माइक्रोफ़ाइनेंस के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पर्याप्त सुधार संभव हुआ है. किंतु ये सारे कार्यक्रम झारखंड में अंकुरित नहीं हो पाये.शिबू मंत्रिमंडलनवनियुक्त शिबू सोरेन मंत्रिमंडल की प्रथम बैठक 30.12.09 को आयोजित हुई और बीपीएल सूची के पुनरीक्षण का निर्णय लिया गया. संभवत: 10 वर्षो के इतिहास में यह पहला अवसर था कि मंत्रीपरिषद की बैठक के एजेंडा में बीपीएल सूची का विषय शामिल किया गया. यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है कि मंत्रीपरिषद को यह जिज्ञासा नहीं हुई कि कोई बीस वर्षो से चल रही बीपीएल सूची में जो भी परिवार सम्मिलित हैं, सही या गलत, उनमें से कितने किस रूप में लाभान्वित हुए, कितने बीपीएल परिवार एपीएल हुए. विकास योजनाओं से किस रूप में ये लाभान्वित हुए.
डीआरडीए एक बड़ी जिम्मेदारी
जब 1980 में भारत सरकार ने विस्तृत दिशा-निर्देश निर्गत करते हुए प्रत्येक जिला स्तर पर सोसाइटिज रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के अंतर्गत डीआरडीए के गठन एवं निबंधन का निर्णय लिया तो उसमें डीआरडीए के लिए विभिन्न कार्य तय किये गये. स्वीकृति वाई लाज के अनुसार स्वैच्छी संस्था के रूप में डीआरडीए को निम्नलिखित मुख्य कृत्यों एवं कत्तर्व्यों का निर्वहन करना है-1. गरीब परिवारों को पहचान, ग्रामवार एवं प्रखंडवार बीपीएल सूची का निर्माण और प्रत्येक पांच वर्षो में कम से कम एक बार सूची का विधिवत सर्वेक्षण संपदान. भारतीय संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम 1992 के प्रावधानानुसार गरीब परिवारों को पहचान की संवैधानिक शक्ति ग्रामसभा को प्रदत्त की गयी और डीआरडीए से अपेक्षा की गयी कि सूची पुनरीक्षण एवं अवद्यतीकरण में डीआरडीए ग्राम सभा को तकनीकी सहायता प्रदान करेगा.2. गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों एवं अन्य विकास कार्यो के लिए ग्राम सभाओं एवं पंचायतों के परामर्श से वार्षिक एवं पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण.3. बैकों के साथ समन्वय स्थगित कर सांस्थिक वित्त की उपलब्धि, सरकारी अंशदान का सदुयोग एवं उत्पादक परियोजनाओं का निरुपण, अंतर्विभागीय समन्वय एवं समीक्षा और जनजागरुकता की व्यवस्था.4. गरीब परिवारों का स्वयं सहायता समूह गठित कर उन्हें वित्त, प्रबंधन, विपणन एवं प्रशिक्षण सुनिश्चित करना तथा गरीब परिवारों को स्वरोजगार कार्यक्रम के अंतर्गत तीन वषरें में गरीबी रेखा से उपर ले जाना.प्रत्येक डीआरडीए की एक गवर्निग बॉडी अधिसूचित है, जिसमें जिले से निर्वाचित सांसदों-विधायकों के अतिरिक्त छह-सात अन्य सदस्य है जो जिलास्तर पर शीर्ष संस्था के रूप में कार्य करती है. उपायुक्त इसके अध्यक्ष है
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