राहुल कुमार:
देश के बच्चों को मिले एक कानून ने बता दिया कि सरकार ने बच्चों का एप्रिल फूल बना दिया है। आप समझ गए होंगे, मैं बच्चों को मिले शिक्षा के अधिकार (राइट टु एजुकेशन ) की ही बात कर रहा हु . 6 से 14 साल तक की उम्र के बच्चे के लिए शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकारों में शामिल कर लिया गया है। यानी 14 साल तक के इस देश के हरेक बच्चे का यह मौलिक अधिकार है कि वह स्कूल जाए, पढ़ाई-लिखाई करे, एक के बाद एक क्लास पास करे और....राजा बाबू बन जाए। सरकार ने यह अधिकार बच्चों को दे दिया है। अब से इस उम्र तक के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य एजुकेशन दी जाएगी, ऐसा सरकार कह रही है। पर दिमाग में कई सवाल कुलबुला रहे हैं। क्या अब 14 साल तक की उम्र के सभी बच्चे हमें स्कूल में दिखा करेंगे? यानी, बूट पॉलिश करते हुए, ढाबों पर बर्तन मांजते हुए, भीख मांगते हुए, ट्रैफिक सिग्नल्स पर मैगजीन-फूल बेचते हुए नहीं? बच्चों का मजदूरी करना और बच्चों से मजदूरी (किसी भी तरह का काम) करवाना भी तो गैरकानूनी है। फिर क्यों मोटरसाइकल पर पांव रखे जनता पर नजर रखे हुए पुलिस वाले को लंच के बाद की चाय देने छोकरा ही आता है? गैरकानूनी होने के बावजूद बाल श्रम तो रुका नहीं...?6 साल से छोटे बच्चों के बारे में यूपीए सरकार का क्या कहना है? 5 साल की उम्र तक गरीब का बच्चा केजी में नहीं गया, उसे अचानक अगले साल (यानी 6 साल का होते ही) प्राइमरी स्कूल में एडमिशन दे दिया जाएगा? किस क्लास में? और, 6 साल की उम्र तक वह क्या कर रहा होगा?14 साल तक एक बच्चा स्कूल जाएगा। 8वीं तक वह अनिवार्य रूप से शिक्षा ग्रहण करेगा। 8वीं के बाद? 8वीं के बाद उसका क्या होगा? क्या 8वीं क्लास तक पहुंचे एक गरीब बच्चे के मां-बाप चमत्कारी रुप से इतना कमाने लगेंगे कि बच्चे की आगे की पढ़ाई का खर्चा उठा सकें? 8वीं तक की एजुकेशन किस काम की है...कृपया बताएं। 8वीं का सर्टिफिकेट उसे कौन सी नौकरी दिलवाएगा और रोजगार के कितने द्वार उसके सामने खोलेगा, जरा पीएम महोदय बताएं?कस्बों और देहातों में ही नहीं, राजधानी दिल्ली के कई इलाकों में ऐसे कई स्कूल हैं जहां बच्चे तो बैठे हैं पर टीचर नहीं हैं। मेरी खुद की पढ़ाई जिस सरकारी स्कूल में हुई है वहां हम 12 के बोर्ड में इकनॉमिक्स का एग्जाम प्राइवेट ट्यूशन के भरोसे दे पाए क्योंकि हमारे स्कूल में साल भर तक (शायद इससे भी ज्यादा समय) के लिए टीचर ही नहीं थी। और आज तो हालात और बदतर हैं। ऐसे में यह बच्चों को शिक्षा का अधिकार देना है या बैठने के लिए टाट भर देना है?केंद्र सरकार राइट टु एजुकेशन एक्ट (आरटीई) बना कर लोगों को दिन-दहाड़े जो ख्वाब देखने के लिए कह रही है, उसकी धुरी में राज्य सरकारें हैं। यानी इस कानून को इंप्लिमेंट करना हर राज्य की जिम्मेदारी है। लेकिन कई राज्य सरकारों ने तो अगले ही दिन केंद्र सरकार को तेवर दिखा दिए थे! मध्य प्रदेश की ओर से 2 तारीख को ही कह दिया गया कि भई, हमने तो सेंट्रल गवर्नमेंट से पहले ही कहा था हम तैयार नहीं हैं क्योंकि इन्फ्रास्ट्र्क्चर मौजूद नहीं है कि कानून लागू कर सकें। अब?
1 अप्रैल को सुबह-सुबह देश के बच्चों के साथ ऐसा घोषित मजाक करने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इन घोषित चिंताओं का रिअलिस्टिक हल बता सकते हैं।
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