दरसल केंद्र मे जो स्थिति कांग्रेस की है वही राज्यों के स्तर पर भाजपा की हैUÐ दोनों पार्टियाँ चुनाव प्रचार के समय तो एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाती है लेकिन दोनों एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैंUÐ दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों के नेता भ्रष्टाचार करने के मामले में एक-दूसरे को पीछे छोड़ रही हैUÐ केंद्र में राज्य करने वाली कांग्रेस ने जहाँ २ जी स्पेक्ट्रम, राष्ट्रमंडल खेलों में लूट, आदर्श सोसायटी घोटाला, और इसरो जैसे घोटाले की लम्बी सूची को अपने खाते में सजा कर रखी वही भाजपा के सबसे चहेते मुख्य मंत्री वी एस यदुरप्पा और उतराखंड में रमेश पोखरियाल को भ्रष्टाचार के मामले में अपनी कुर्सी गवांनी पड़ीUÐकर्नाट में अवैध खनन के घिनौने खेल में क्या बीजेपी और काँग्रेस सभी का चेहरा दागदार है. भ्रष्टाचार के मामले में मूख्य रूप से दोनों राष्ट्रीय पार्टियाँ एक हीं हाइवे पर अपनी गाडी को हांक रहें हैंUÐ
हाल में २ जी स्पेक्ट्रम के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या आया उत्तर प्रदेश में सभी पार्टियाँ प्रचार में अपने आप को हरिश्चंद्र बताने लगी. लेकिन ये कौन नहीं जानता की भ्रष्टाचार के नाम पर संसद से लेकर टी.वी पर जिस पार्टी के नेता सबसे ज्यादा अपने आपको हरिश्चंद्र बता रहे थे उसी पार्टी के मुखिया ने उत्तर प्रदेश में बाबु सिंह कुशवाहा को गले लगा कर भ्रष्टाचार की मुहीम पर ब्रेक लगा दिया.
भ्रष्टाचार इस देश को किस तरह घून की तरह खाये जा रहा है उसका सबसे बड़ा उदाहरण तो हमारे विधायक और सांसद हैंUÐ सभी जानते हैं कि उनको अपने कार्य के लिये कितना वेतन और भत्ता मिलता है ? परन्तु देखते ही देखते ही देखते उनके महल खड़े हो जाते हैं, करोड़ों की अचल सम्पत्ति बन जाती है और अच्छा-खासा बैंक बैलेंस जमा हो जाता हैUÐ आश्चर्य की बात तो यह है कि लोग इस विषय में ऐसे बात करते हैं कि जैसे यह एक आम बात होUÐ जिस जनता ने उनको चुनकर संसद या विधानसभा तक पहुँचाया है, वहां प्रश्न तक नहीं करती कि उनके पास इतना धन आया कहाँ से ? लोग यह भी नहीं सोचते कि जो पैसा आम जनता से कर के रूप में वसूला जाता है, देश के विकास के लिये, उसका न जाने कितना बड़ा हिस्सा तो इन लोक प्रतिनिधियों के जेब में चला जाता है.UÐ
भ्रष्टाचार के इस रोग के कारण हमारे देश का कितना नुकसान हो रहा है, इसका अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है. पर इतना तो साफ़ दिखता है कि सरकार द्वारा चलाई गयी अनेक योजनाओं का लाभ लक्षित समूह तक नहीं पहुँच पाता हैUÐ इसके लिये सरकारी मशीनरी के साथ ही साथ जनता भी दोषी हैUÐ सूचना के अधिकार का कानून बनने के बाद कुछ संवेदनशील लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध सामने आये हैं, जिससे पहले से स्थिति सुधरी है. पर कितने प्रतिशत ? यह कहना मुश्किल है. जिस देश में लोगों द्वारा चुने गये प्रतिनिधि ही लोगों का पैसा खाने के लिये तैयार बैठे हों, वहाँ इससे अधिक सुधार कानून द्वारा नहीं हो सकता हैUÐ
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