शिव और प्रेम
जब भी प्रेम की बात होती है, तो सबसे पहले श्रीकृष्ण की छवि उभरती है। वे सौंदर्य, आकर्षण और माधुर्य के प्रतीक हैं। उनकी हंसमुखता, उनकी मधुर बांसुरी, उनकी बाल सुलभ शरारतें, और उनका सहज प्रेम लोगों को मोह लेता है। राधा, गोपियां और भक्तों ने उन्हें प्रेम किया क्योंकि वे हर दृष्टि से आदर्श प्रेमी थे। उनके प्रेम में आकर्षण था, सौंदर्य था, और सबसे महत्वपूर्ण—एक निश्चितता थी कि उनका प्रेम ठुकराया नहीं जाएगा।
लेकिन शिव? वे इस प्रेम की परिभाषा से बिल्कुल अलग हैं। वे अकेले रहते हैं, गहरे ध्यान में डूबे रहते हैं, उनका पहनावा आकर्षक नहीं, बल्कि साधारण और रहस्यमयी है—बाघ की खाल, भस्म, गले में नाग। वे प्रेम का कोई आमंत्रण नहीं देते, न ही किसी को रिझाने का प्रयास करते हैं। वे गंभीर हैं, मौन हैं, और संसार से दूर अपने ही ध्यान में लीन रहते हैं।
अब सोचिए—कोई शिव से क्यों प्रेम करेगा?
कृष्ण से प्रेम करना आसान है, लेकिन शिव से प्रेम करना कठिन। कृष्ण का प्रेम सरल और सहज है, लेकिन शिव का प्रेम तपस्या मांगता है। उनका प्रेम एक परीक्षा है, जहां धैर्य, समर्पण और विश्वास की कसौटी पर प्रेमी को खुद को सिद्ध करना होता है। वे प्रेम के बदले प्रेम देंगे भी या नहीं, यह भी निश्चित नहीं। फिर भी, पार्वती ने शिव को चुना।
पार्वती जानती थीं कि शिव का प्रेम पाने के लिए उन्हें कठोर तपस्या करनी होगी। वे जानती थीं कि शिव को प्राप्त करने का मार्ग सरल नहीं है, लेकिन उनका प्रेम सच्चा था। उन्होंने वर्षों तक तप किया, कठिन साधना की, और अपने प्रेम को शिव तक पहुंचाने का हर संभव प्रयास किया। आखिरकार, उनकी श्रद्धा और समर्पण ने शिव को स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया।
यही प्रेम की सच्ची परीक्षा थी।
कृष्ण का प्रेम मिठास से भरा था, जहां प्रेम का उत्तर प्रेम ही था। लेकिन शिव का प्रेम एक कसौटी है, जहां प्रेमी को अपने प्रेम की सच्चाई सिद्ध करनी पड़ती है। कृष्ण अपने प्रेम को सहज रूप में स्वीकार करते हैं, लेकिन शिव पहले देखते हैं कि प्रेमी में धैर्य, समर्पण और विश्वास है या नहीं।
कृष्ण प्रेम में सहज रूप से आकर्षित करते हैं, जबकि शिव का प्रेम धैर्य, समर्पण और विश्वास की नींव पर स्थापित होता है। पार्वती इसी प्रेम की प्रतीक हैं, जिन्होंने अपने अटूट विश्वास और तप से शिव को प्राप्त किया। यही प्रेम का सबसे गहरा और सच्चा स्वरूप है।
इसीलिए पार्वती का प्रेम सबसे ऊँचा माना जाता है। क्योंकि उन्होंने प्रेम किसी आकर्षण, सौंदर्य या आश्वासन के कारण नहीं, बल्कि धैर्य, समर्पण और अटूट विश्वास के कारण किया। उन्होंने उस प्रेम को अपनाया, जो कठिन था, जिसमें कोई निश्चितता नहीं थी, लेकिन जो एक बार मिल जाए तो अमर हो जाता है।
कृष्ण प्रेम में बुलाते हैं। शिव प्रेम में स्वीकार करने से पहले गहराई से अनुभव करते हैं। और पार्वती प्रेम की वह परिभाषा हैं, जो धैर्य, समर्पण और विश्वास से बनी है। यही प्रेम का सबसे गहरा और सच्चा स्वरूप है।